रविवार, 13 मई 2018

मोदी जी ! ननिहाल से कोई खाली नहीं जाता यह बात मैथिल बखुबी जानते हैं

"ग पग पोखरि माछ मखान ,सरस बोल मूसकी मूख पान , विद्या वैभब शांति प्रतीक ... ई मिथिला  थीक"।  अपने चार साल के कार्यकाल में प्रधानमंत्री मोदी जब तीसरे दौरे में नेपाल के जनकपुर धाम पहुंचे तो उन्होंने मिथिला के गौरवशाली परंपरा का कुछ यूँ बखान किया वो भी मिथिलेश कुमारी यानी सिया जी की मातृभाषा में। मिथिला में आकर मोदी अभिभूत थे ,यहाँ तक कि उन्होंने माता सीता के जनकपुर को अपना ननिहाल माना और कहा ननिहाल को कुछ दिए बगैर कोई कैसे जायेगा।

पीएम मोदी जनकपुर स्थित जानकी मंदिर में पूजा करते हुए 
लेकिन सरलता ,सरसता और मुस्की वाली मिथिला /बिहार की पीड़ा कथाकार राजकमल चौधरी की "अपराजिता "से बेहतर समझी जा सकती है। “गारंटी ऑफ पीस” खतम छल…विद्यापतिक गीत खतम छल। रूसक कथा खतम छल। डकैतीक कथा थम्हि गेल…सोना-चानीक तेजी-मन्दी सेहो बन्द भऽ गेल रहय। सिकरेटक लगातार धुँआ रहि गेल आ रहि गेल अपराजिता! सरिपहुँ… बागमती, कमला, बलान, गंडक आ खास कऽ कऽ कोसी तँ अपराजिता अछि ने! ककरो सामर्थ नहि जे एकरा पराजित कऽ सकय। सरकार आओत…चलि जायत..मिनिस्टरी बनत आ टूटत, मुदा ई कोसी…ई बागमती…ई कमला आ बलान…अपन एही प्रलयंकारी गति मे गाम केँ भसिअबैत, हरिअर-हरिअर खेत केँ उज्जर करैत, माल-जालकेँ नाश करैत, घर-द्वारक सत्यानाश करैत बहैत रहत आ बहैत रहत"

तो सत्तर साल की आज़ादी के बाद भी भारत  नेपाल की बीच बाढ़ की विभीषिका को अबतक नज़र अंदाज किया जाता रहा।अबतक इन इलाकों की तस्वीर नहीं बदली।  1950 से लेकर अबतक भारत-नेपाल  कोसी एग्रीमेंट से आगे नहीं बढ़ पाया। वाटर मैनेजमेंट को लेकर भारत और नेपाल का अतीत तल्खियों से भरा रहा है। कोसी, गण्डकी, महाकाली जैसी बड़ी नदियों पर बाँध बनाने और सिंचाई -बिजली की बात भी शुरू हुई लेकिन 50 वर्षो में दोनों देश कोसी प्रोजेक्ट में ही उलझे रहे। दोनो देश पानी और प्रबंधन के मुद्दे पर ही उलझते रहे। अगर छोटी बड़ी नदियों  की बात करे तो 6000 ज्यादा जलधारा नेपाल से निकलती है और हर साल बिहार और उत्तर प्रदेश के करोड़ो लोग इससे प्रभावित होते रहे हैं । जब की इन विशाल जलसंसाधन की क्षमता दोनों देशों के लाखों एकड़ जमीन  सिंचित कर सकती  है और पुरे उत्तर भारत के बिजली की आपूर्ति अकेले नेपाल की नदियां कर सकती है। मोदी जी आपने सही कहा नेपाल के बिना हमारे विशवास अधूरे है सिया के बगैर राम क्या ? सो नासमझी में गरीबी उधर भी है और इधर भी।

जनकपुर में नागरिक अभिनंदन कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी 
फणीश्वरनाथ रेणु के 40 साल पुराने संस्मरण को पढ़िए ,कुछ भी तो नहीं बदला है। .बिहार, बाढ़ और भ्रष्टाचार की कहानी में। सोन, पुनपुन, फल्गु, कर्मनाशा, दुर्गावती, कोसी, गंडक, घाघरा,  कमला, भुतही बलान, महानंदा इतनी नदियाँ जो जीवन धारा बन सकती थी लेकिन हर साल सिर्फ तबाही लाती है और हमारी सरकार फिर  अगली बार का इन्तजार करती है। बिहार के 18 जिलों में जलप्रलय जैसी हालत हर साल बनती है। 3  करोड़ से ज्यादा लोग  प्रभावित होते  है। लेकिन पटना में सरकार अपनी राजनितिक अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही होती  है। उधर विपक्षी दलों के सामने टारगेट पीएम मोदी के असर को कम करना है। कोसी का  असर तो हर साल  फीचर है।  ज्यादा से ज्यादा मरने वालों की संख्या बढ़ेगी और सम्पति का नुक्सान बढ़ेगा !  ऐसी ही  राजनितिक उपेक्षा का नतीजा उत्तर बिहार/मिथिला  की बाढ़ है।  इस सियासत का उत्तर बिहार वर्षों से शिकार रहा है ।

1955  में केन्द्र सरकार ने एक योजना बनाई थी , जिसमें बराहक्षेत्र में 100  करोड़ रूपये की लागत से एक डैम बनाया जाना था । इस बाँध के बन जाने से उत्तर बिहार खासकर मिथिला  के 20  लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचित किया जा सकता था साथ ही 4000  मेगावाट के करीब बिजली भी पैदा की जा सकती थी । लेकिन भारत सरकार के सामने प्राथमिकता भाखड़ा  नंगल डैम थी ,क्योंकि इसका नेतृत्व प्रताप सिंह कैरों कर रहे थे । पैसे की तंगी बहाना बना और बिहार की लाखों आबादी भूख, अशिक्षा, और बेरोजगारी के दल दल में लगा तार फंसती रही लेकिन वह डैम नहीं बन पाया।

कोसी का कटाव
नेपाल से निकलने वाली कोसी  नदी तक़रीबन 69000  कि मी सफर तय करके गंगा में बिलुप्त हो जाती है । नेपाल की यह सप्त कोशी अपनी सातों धाराओं के साथ मिलकर बिहार मे कोसी  बनकर अपना प्रचंड रूप ले लेती है । खास बात यह है कि कोसी  की धारा उन्ही इलाके से बहती है जो वर्षों से  न केबल बिहार से बल्कि देश की उपेक्षा के भी शिकार रहे  है। मिथिलांचल में हर साल आने वाले इस प्रलय को हाई डैम बनाकर ही रोका जा सकता था  ।  बिहार की  बाढ़ हर साल  एक हफ्ते के लिए नेशनल मीडिया की बड़ी खबर होती है।  डिबेट शो में बिहार की बाढ़ की भी लालू जी  के बेटे  तेजप्रताप की शादी की तरह टी आर पी है लेकिन हफ्ते पंद्रह दिनों के बाद लोग भूल जाते हैं । फ़िर शुरू होती है किसी घोटाले कि कहानी । बिहार में पिछले 10 साल पुरानी  बाढ़ घोटाले कि जांच अभी भी चल रही है। ये अलग बात है कि घोटाले के वही नायक हर बार बाढ़ प्रभावित इलाके में अपनी सेवा  का मौका ले लेते हैं।

बिहार की यह कहानी सचमुच "अपराजिता" है। राजकमल चौधरी और फणीश्वर नाथ की "कोसी" में कुछ नहीं बदला है सिर्फ पात्र बदले है जगन्नाथ जी हों या लालू  फिर नीतीश जी बाढ़ ने मिथिलांचल की काया को क्षीण करके राजनेताओं की सियासी काया को हमेशा मजबूती दी हैं।  प्रधानमंत्री मोदी का नेपाल को लेकर जद्दोजेहद  काफी गंभीर और चुनौतीपूर्ण  है और मोदी इस कूटनीति का जवाब देना जानते है। लेकिन सिया की नगरी से  सांस्कृतिक सम्बन्ध प्रगाढ़ करने का जो संकल्प मोदी जी ने लिया है उसमे रामायण सर्किट के साथ साथ इन इलाकों को भी आर्थिक प्रगति से जोड़ना होगा। इसमें सिर्फ मजबूत इच्छाशक्ति की जरुरत है। मोदी जी ! वैसे, ननिहाल से कोई खाली नहीं जाता यह बात मिथिला के लोग जानते हैं।

लेखक - विनोद  मिश्र

वरिष्ठ पत्रकार विनोद मिश्र वर्तमान में डीडी न्यूज से संबद्ध हैं और कंसल्टेंट के पद पर कार्यरत हैं

रविवार, 6 मई 2018

"पाकिस्तान #AMU की पैदाइश, बांकि सारी बातें इतिहास पर पर्दा डालने की कोशिश"

दस सालों तक उपराष्ट्रपति रह कर सत्ता की मलाई चाटने के बाद अपने कार्यकाल के आखिरी दिन हामिद अंसारी(पूर्व छात्र, #AMU) को एहसास हुआ कि भारत के मुसलमान डर के साये में जी रहे हैं। ये बानगी है उस ऐतिहासिक मानसिकता की जिसने भारत के टुकड़े करवाये। जब तक सत्ता में रहते हैं, ये मुल्क अपना लगता है। सत्ता खोने के डर से देश को तोड़ने की बात होने लगती है।

यह मानना कि भारत के टुकड़े करने के लिए अकेले जिन्ना जिम्म्मेवार है तो यह एक भुलावे जैसा है। इतिहास पर पर्दा डालने की कोशिश है। जिन्ना सिर्फ एक मोहरा था, असल में तो पाकिस्तान अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी #AMU की पैदाइश है। जिन्ना धर्मनिरपेक्ष था। #AMU ने जिन्ना को कट्टर साम्प्रदायिक बनाया। जिन्ना को सामने रखा और उसका इस्तेमाल कर देश को तोड़ दिया।

पाकिस्तान के जाने माने अर्थशास्री और कम समय के लिए पाकिस्तान के वित्त मंत्री भी रहे शाहिद जावेद बुर्की अपनी किताब पाकिस्तान: फिफ्टी इयर्स ऑफ नेशनहुड में लिखते हैं कि "सर सय्यद की बनाई अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी #AMU ने न केवल पाकिस्तान आंदोलन और उसके कर्ताधर्ताओं को जन्म दिया बल्कि दुनिया के नक्शे पर एक नए मुल्क पाकिस्तान और उसके शुरुआती शासकों को भी पैदा किया। अलीगढ़ यूनिवर्सिटी #AMU ने मुसलमानों में नई राजनीतिक चेतना जगाई और भारत के मुसलमानों को 'टू नेशन्स थ्योरी' के पीछे खड़ा किया।"

पाकिस्तान का बच्चा-बच्चा स्कूल की किताबों में यही पढ़ता है लेकिन भारत में इतिहास के इन तथ्यों पर चालाकी से पर्दा डाल दिया गया है। जिहादियों को बंदूक चलाने के लिए भारत में बहुत सारे कंधे हासिल हैं। 'कवर फायर' के लिए राजनीतिक दलों, एन जी ओ, पत्रकारों, इतिहासकारों, कलाकारों की एक लंबी श्रृंखला है।

वर्तमान पाकिस्तान तो सिर्फ एक भूगोल है। पाकिस्तान का इतिहास #AMU के अंदर आज भी जिंदा है। #AMU की नींव जिस सय्यद अहमद खान ने रखी थी, उसी ने पहली बार 'टू नेशन्स थ्योरी' को दुनिया के सामने रखा। 'टू नेशन्स थ्योरी' के आधार पर ही देश के टुकड़े हुए।

सय्यद अहमद खान ने 1857 की आजादी की लड़ाई को 'हरामजदगी' कहा। मुसलमानों को आजादी की लड़ाई से अलग किया। ये हैं उसकी सोच के कुछ नमूने :

1. " हिंदुओं के साथ रहने की बजाय हम अंग्रेजों के नीचे रह लेंगे क्योंकि वो भी किताब (आसमानी) से चलने वाले हैं।"
2. " जब तक दो कौमों में से कोई एक जीत कर दूसरे को गुलाम नहीं बना लेगा तब तक अमन कायम नहीं हो सकता।"
3. " उर्दू सभ्य लोगों की भाषा है और हिंदी गँवारों की भाषा है।"

ये हैं #AMU के संस्थापक की विभाजनकारी, साम्प्रदायिक और हिंदुओं के प्रति घृणा और हिंदी भाषा से नफरत की सोच के नमूने जिसकी बुनियाद पर आगे चल कर मुस्लिम लीग बनाई गई। अंदाजा करना मुश्किल नहीं कि जब जड़ ही ऐसी थी तो फल कैसे होंगे।

आइये देखते हैं #AMU से निकलने वाले पाकिस्तान के रहनुमाओं को:-

1. लियाकत अली खान जिसने अपनी बीवी राणा के साथ 1930 के गोलमेज सम्मेलन से निराश जिन्ना को दुबारा भारत आने के लिए राजी किया ताकि मुस्लिम लीग के अधूरे काम को पूरा किया जा सके। ये पाकिस्तान का पहला प्रधानमंत्री बना।

2. फजल इलाही चौधरी पाकिस्तान का पाँचवाँ राष्ट्रपति, पाकिस्तान की नेशनल असेम्बली का स्पीकर और लियाकत अली खान की सरकार में मंत्री।

3. पाकिस्तान की हुकूमत पर कब्जा करने वाला पहला फौजी जनरल अयूब खान; पाकिस्तान का दूसरा राष्ट्रपति। जो अलीगढ़ #AMU की अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सका। कर लेता तो शायद पहला राष्ट्रपति ही बन जाता।

4. खान हबीबुल्लाह खान; कार्यवाहक राष्ट्रपति, सीनेट का पहला चेयरमैन, पश्चिमी पाकिस्तान का मुख्यमंत्री और अयूब खान की सरकार में गृहमंत्री।

5. ख्वाजा नजीमुद्दीन: पाकिस्तान मुस्लिम लीग का अध्य्क्ष, पाकिस्तान का दूसरा प्रधानमंत्री और दूसरा गवर्नर जनरल।

6. अबू बकर अहमद हलीम; (पैदाइश बिहार में), #AMU में प्रोफेसर, पाकिस्तान आंदोलन में पर्चे और साहित्य लिखने की जिम्मेदारी। सिंध यूनिवर्सिटी का पहला वाइस चांसलर और कराँची यूनिवर्सिटी का पहला वाइस चांसलर।

7. ज़ियाउद्दीन अहमद; #AMU के कुलपति, पाकिस्तान आन्दोलन में केंद्रीय नेतृत्व।

8. अब्दुर रब निश्तर; पाकिस्तानी पंजाब का पहला पाकिस्तानी गवर्नर, पाकिस्तान का संचार मंत्री।

दर्जनों ऐसे नाम हैं। साफ है कि जिन्ना के उस्ताद और गुर्गे सब #AMU की ही पैदाइश थे जिन्होंने भारत के टुकड़े कर पाकिस्तान को पैदा किया। पाकिस्तान बने इसके लिए ऑल इंडिया सुन्नी कॉन्फ्रेंस के बैनर तले बरेलवी मौलानाओं ने फतवे जारी किए। 'इस्लाम खतरे में है' यह हल्ला कर मुस्लिम लीग ने बरेलवी और सूफियों को पाकिस्तान के लिए राजी किया। मौलाना हुसैन अहमद मदनी ने जरूर पाकिस्तान के विचार का विरोध किया लेकिन कुछ ताकतवर देवबंदी मौलाना समर्थन में भी थे।

बँटवारे ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया। कालांतर में किसी देश और समाज के धार्मिक आधार पर विभाजन के लिए पाकिस्तानवाद शब्द ही प्रयोग होने लगा। नाइजीरिया और सूडान इसके उदाहरण हैं।

अलीगढ़ विश्वविद्यालय #AMU ने दुनिया को एक मुल्क ही नहीं दिया है। ओसामा बिन लादेन के भक्त और महमूद गजनवी की याद में आँसू बहाने वाले प्रतिबंधित स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया #SIMI की पैदाइश भी 1977 में #AMU से ही हुई है। जिस पर 2001 में अटल जी की सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया। लश्करे तैयबा, इंडियन मुजाहिदीन, हूजी, हरकत उल अंसार जैसे आतंकी संगठनों के साथ सिमी के रिश्ते जगजाहिर हैं लेकिन कांग्रेस ने इसी सिमी #SIMI को बचाने के लिए #भगवा_आतंकवाद का षड्यंत्र रचा। हिंदुओं और हिन्दू संगठनों को फँसाने में कांग्रेस ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। आज भी सिमी #SIMI, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के नाम से #ISIS के स्लीपर सेल के रुप में काम कर रहा है। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की गतिविधियों का अब पर्दाफाश हो रहा है और कुछ राज्यों में प्रतिबंध भी लगा है।



इस साल की शुरुआत में हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादी मन्नान बशीर वानी की खबरें और तस्वीरें वायरल हुई थी। साहब ने भी अपना शोध कार्य #AMU में ही पूरा किया था।

और कितना इतिहास वाचन किया जाए आपका? मेरा #AMU के भाइयों से इतना ही अनुरोध है कि ऐसी आजादी कहीं नहीं मिलेगी, जहाँ आप भारत तेरे टुकड़े होंगे.....इंशाअल्लाह.... इंशाअल्लाह के नारे लगा सको। पाकिस्तान में तो सिर्फ #मस्जिद_में_पाद_देने पर #तैमूर को सजा हो जाती है और भारत में #तैमूर की चिंता में मीडिया आसमान उठाये रहता है।

इसलिए भाइयों इतिहास के कलंक को मिटाने के लिए आगे आओ। शुरुआत जिन्ना की तस्वीर हटा कर की जा सकती है। जमाना बदल रहा है। उसकी आहट सुनो। गौर से देखो तुम्हारा प्यारा पाकिस्तान, तुम्हारे सपनों का पाकिस्तान 1971 के बाद फिर से बिखरने की कगार पर है।

लेखक - गोविंद शर्मा, हिंद-बलोच फोरम के अंतर्राष्ट्रीय संयोजक हैं

गुरुवार, 3 मई 2018

काशी से कठुवा तक - कठघरे में कांग्रेस !

ठुवा कांड के बहाने एक बार पुन देशद्रोहियों ने भयानक षड्यंत्र के तहत नारी सम्मान को मुद्दा बनाया। क्योंकि इन्हें एक बात ठीक प्रकार से पता है कि भारतीय इतिहास में दो युद्ध, जो अमर प्रबंध काव्य है, वह नारी स्वाभिमान के लिए ही लड़े गए। भारतीय संस्कृति के स्त्री प्रधान होने के कारण एक आठ वर्षीय बालिका की हत्या एवं उसके बलात्कार के कहानी को गढ़ कर जिस प्रकार षड्यंत्र के केंद्र बिंदु में खड़ा किया गया और दिल्ली के इंडिया गेट पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका के नेतृत्व में कैंडिल मार्च निकला, इस पूरे प्रकरण ने कांग्रेस के बीते इतिहास की याद दिला दी।
Pic Courtesy : National Herald
कांग्रेस पार्टी के इतिहास पर अगर आप नजर डालेंगें तो पाएंगे कि चाहे कांग्रेस के अंदर आंतरिक कमजोरियों के कारण सत्ता संघर्ष हुआ हो अथवा विपक्ष मजबूत हुआ हो और ऐसे हालात में कांग्रेस सत्ता से बेदखल हुई हो तो ये पार्टी स्त्री स्वाभिमान को मुद्दा बनाकर समाज के अंदर ऐसा वातावरण निर्मित करती रही है कि जिससे ये लगे कि हिन्दुस्तान चरित्रवानों का देश न होकर हवस के दरिंदों का देश होकर रह गया है। और तो और ऐसे लोगों को विरोध में उतारा गया जिन्हें देश के अंदर नग्नता एवं विकृति परोसने के लिए जिम्मेदार माना जाता है।
सन् 1939 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद के चुनाव नेता जी सुभाष चंद्र बोस v/s सीताराम पट्टाभिरमैय्या के बीच हुआ जिसमें गांधी जी का यह कथन कि पट्टाभिरमेय्या की हार मेरी व्यक्तिगत हार होगी, इसके बावजूद सुभाष चंद्र बोस का चुनाव जीत जाना एक एतिहासिक तथ्य है। 
Pic Courtesy : Rediff
जिसके बाद गांधी जी और नेहरू ने कार्यसमिति के सभी सदस्यों से इस्तीफा दिलवा कर सुभाष चंद्र बोस को इस्तीफा देने के लिए विवश कर दिया। जिन लोगों ने लोकतांत्रिक तरीके से जीते हुए सुभाष चंद्र बोस को अपना अध्यक्ष स्वीकार नहीं किया। वो लोग नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप कैसे स्वीकार कर सकते हैं ? ये घटना तो उन दिनों का है जब देश को आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ने का दंभ भरने वाली कांग्रेस, जहां पर दुश्मन विदेशी था और देश के लिए लड़ना था तब तो दल के अंदर कोई गैर अध्यक्ष हो जाए ये तो स्वीकार न हो सका क्योंकि सुभाष चंद्र बोस अंग्रेजों की दलाली नहीं कर सकते थे और उनका राष्ट्रप्रेम निष्कलंक था। 
फिर शुरू हुआ भारतीय संस्कृति के आधार स्तम्भ मंदिरों के विरुद्ध भयानक षड्यंत्र का अभियान। कांग्रेस के तत्कालीन नेताओं को यह पता था कि मंदिर शिक्षा, स्वास्थ्य, सम्पर्क एवं संस्कारों के केंद्र होते हैं और कांग्रेस के शीर्ष नेता सीताराम पट्टाभिरमैया ने औरंगजेब के द्वारा काशी विश्वनाथ के मंदिर तोड़े जाने के औचित्य को सही ठहराया। पट्टाभिरमैया ने अपनी पुस्तक में इसका जिक्र करते हुए यह कहा कि काशी के ब्राह्मण दुराचारी हो गए थे और उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में एक राजकुमारी का अपहरण कर बलात्कार किया। इस कारण औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ का मंदिर तोड़वाया। जब उनसे पूछा गया कि यह तथ्य आपको कहा से मिला तो उन्होंने बताया कि उनसे मिलने वाले एक मौलाना के पिता ने अरबी भाषा में पांडुलिपि में इसका जिक्र किया है। 
जब उस पांडुलिपि को दिखाने की बात आई तो मौलाना भी मुकर गए। परंतु एक तथ्य जो वामपंथियों के साथ मिलकर कांग्रेसी नेताओं ने स्थापित करने की कोशिश कि हिंदूस्तान के जितने भी हिंदू मंदिर तोड़े गए, उन सभी में दुराचार हो रहे थे। अयोध्या, मथुरा, काशी एवं सोमनाथ के मंदिरों को विदेशी आक्रांताओं द्वारा तोड़े जाने की घटनाओं का भी कांग्रेस के नेताओं ने बचाव किया। सन् 1939 से लेकर 2018 तक कांग्रेस की इस लाइन में परिवर्तन होता नहीं दिख रहा।
तिहासिक घटनाक्रम में मूल बात ये है कि मंदिर तोड़ने का कारण भी नारी अस्मिता को ही बनाया गया। फिर नब्बे के दशक में सोमनाथ मंदिर को गजनवी ने क्यों तोड़ा इस पर वामपंथी इतिहासकार जो कहानी लेकर आए उसका भी सार सार-संक्षेप भी यही था। 1975 इलाहाबाद हाईकोर्ट से चुनाव दुरूपयोग का मुकदमा हारने के बाद इमरजेंसी से जो त्राही हुई और इंदिरा गांधी का सत्ताच्युत होना कांग्रेस को खल गया। पुन कांग्रेस ने एक साजिश रची। उसे यह पता था 85 लोकसभा सीटों वाली यूपी में दिल्ली के सत्ता की चाभी है। सन 1979 में उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में गोरखपुर से कुशीनगर जा रही एक बस से नारायणपुर गांव में एक बकरी कुचल कर मर गई। चूंकि वह बकरी अल्पसंख्यक समुदाय के किसी व्यक्ति की थी। उस गांव में बस को रोककर तोड़फोड़ की गई। बस में बैठी महिलाओं के साथ दुव्र्यवहार किया गया। बस के पीछे से उस क्षेत्र के तत्कालीन थानाध्यक्ष ललित नारायण चतुर्वेदी अपनी जीप से आ रहे थे। उन्होंने रोकने की कोशिश की, उनके साथ भी मारपीट की गई। फिर पीएसी ने बल प्रयोग करके वातावरण को शांत किया।
 
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तीन चार दिनों के अंदर बगैर प्रशासन को सूचना दिए चुपके से श्रीमति इंदिरा गांधी वहां पहुंची और कहानी में एक नया मोड़ आया। इस पूरे घटनाक्रम में नारायणपुर के अल्पसंख्यक परिवार की महिलाओं के साथ बलात्कार की बात जोड़ दी गई। दूसरे दिन पूरे देश में कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों पर अत्याचार का मुद्दा बनाकर उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री बनारसीदास गुप्त से इस्तीफा ले लिया। बाद में पता चला कि महिलाओं के साथ दुव्र्यवहार जैसी कोई घटना हुई ही नहीं थी।
इसी प्रकार काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने के लिए काशी के ब्राह्मण और विद्वानों को जिम्मेदार ठहराने वाले बयान के बाद देश के प्रमुख मंदिरों के साथ कोई न कोई षड्यंत्र करके इसका सरकारी अधिग्रहण किया गया। ढाई साल मोरारजी, छह साल अटल जी अथवा नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में किसी भी हिन्दु मंदिर का सरकारी अधिग्रहण नहीं हुआ। देश में जितने भी हिन्दू मंदिरों का सरकारी अधिग्रहण हुआ वो सभी कांग्रेस के शासन काल में ही हुआ। 
वाराणसी (वर्तमान में चंदौली) जिले के रघुनाथपुर ग्राम के दो भाइयों मार्कंडेय एवं विभूति सिंह ने काशी विश्वनाथ मंदिर का सोना चोरी किया। पकड़े गए, जेल गए और इसको आधार बनाकर 1983 में काशी विश्वनाथ मंदिर का अधिग्रहण कर लिया गया। बाद में जेल से छुटने के बाद दोनों भाइयों में से एक अपने गांव का प्रधान भी बना और इनकी कांग्रेस नेताओं से नजदीकी कोई छुपी बात नहीं रही। सनातन हिन्दू धर्म और मंदिरों से घृणा कांग्रेस नेताओं के लिए छुपाने जैसी बात नहीं है। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दौरान दीपावली के दिन हिन्दूओं के सर्वोच्च धर्मगुरू शंकराचार्य की गिरफ्तारी और कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष राहुल गांधी का यह कथन की मंदिरों में तो लोग लड़कियां छेड़ने के लिए जाते हैं, कांग्रेस और खासतौर पर गांधी परिवार की सनातन हिन्दू समाज के प्रति सोच को नंगा करता है। कांग्रेस ने 1939 से लेकर 2018 तक अपने हिन्दु विरोध और नारी को केंद्र बिंदु बनाकर षड्यंत्र रचने के मूल स्वभाव को छोड़ा नहीं है। 
काशी से कठुवा तक आधारहीन आरोपों के द्वारा हमेशा मंदिर एवं हिन्दू आस्था के केंद्रों को निशाना बनाने की कोशिश की गई। कठुवा के घटना के सम्बंध में कुछ तथ्य हम रख रहे हैं।
1. घटना जम्मू के कठुवा में सम्भवतः जनवरी में घटित हुई। ये मुद्दा 3 महीने बाद उठा।
2. जम्मू का यह इलाका कश्मीर घाटी के विपरीत शांत और हिन्दू बहुल है।
3. पीड़िता बंजारा प्रवृत्ति वाले बकरवाल मुस्लिम समुदाय से थी। उसके माता-पिता का निधन हो चुका था और वह अपने रिश्तेदार के साथ रहती थी। उसके नाम थोड़ी पारिवारिक सम्पत्ति भी थी।
4. कठुवा के इस इलाके में कुछ वर्षों से अवैध रोहिंग्या बसाहट हो रही है।
5. जनवरी में पीड़िता के लापता हो जाने के कुछ दिनों बाद उसका शव मंदिर में पाया गया।
6. पहली पोस्टमार्टम एवं फाॅरेंसिक जांच की रिपोर्ट में पीड़िता के साथ बलात्कार की घटना से इनकार किया गया।
7. मंदिर आबादी के बीच है जहां कोई बंद करने योग्य दरवाजा नहीं है। मंदिर हमेशा खुला रहता है, यहां रोज लोग आते हैं, यहां किसी को आठ दिनों तक बंधक बनाये रखना असम्भव है।
8. पीड़िता के शरीर पर गीली मिट्टी लिपटी हुई थी, अर्थात उसकी हत्या के पूर्व उसे मिट्टी पर लिटाया और घसीटा गया था। मंदिर मार्बल का है, जहां कीचड़ नहीं होता है और पोस्टमार्टम में बताये गए मृत्यु के समय पर आसपास कहीं बारिश नहीं हुई थी। हत्या कहीं और कर उसका शव कुछ समय पहले मंदिर में डाला गया।
9. मंदिर जिस तरह आबादी के बीच है, सम्भव नहीं है कि वहां 8 दिनों तक शव सड़ता रहे और लोगों को पता न चले।
10. घटना के बाद जब स्थानीय पत्रकार वहां पहुंचे तब रोहिंग्या लोगों ने उनके साथ मारपीट की।
11. मिडिया के एक तबके ने घटना के साथ हिन्दू आरोपी और घटनास्थल के रूप में मंदिर शब्द विशेष रूप से उछला।
12. भाजपा के विधायकों ने राज्य सरकार से के सीबीआई जांच करने का केंद्र से अनुरोध करने को कहा।
13. मुफ्ती सरकार ने सीबीआई जांच का अनुरोध न करते हुए जाँच के लिए एसआईटी का गठन कर दिया।
14. कश्मीर में घटना के विरोध में आंदोलनों का नेतृत्व गुलाम नबी आजाद के प्रमुख सहयोगी कर रहे हैं।
15. जम्मू रीजन के पुलिस कर्मियों का नाम भी बलात्कारियों की लिस्ट में डाला गया ताकि जांच टीम में सिर्फ कश्मीर रीजन के (मुस्लिम पढ़े) अधिकारियों की नियुक्ति को उचित सिद्ध किया जा सके।
16. एसआईटी ने तत्काल रिपोर्ट दी कि उस बच्ची को 8-9 दिन तक मंदिर के तहखाने में बन्द रखा गया जबकि उस मंदिर में कोई तहखाना हैं ही नहीं। 
17. पुजारी ने अपने बेटे से भी बलात्कार करवाया और अपने भतीजे को 400 किलोमीटर से उस बच्ची का रेप करने बुलाया, ये डॉक्यूमेंट्री सिद्ध हो गया हैं कि बताए गए दिन वो लड़का घटनास्थल से 400 किमी. दूर अपने शहर में एक परीक्षा दे रहा था। 

18. बकरवाल मुस्लिम भारतीय सेना के प्रमुख सहयोगी हैं जो सेना के लिए दुर्गम स्थानों पर खच्चर पर लाद कर रसद पहुंचाने का काम करते हैं। कारगिल युद्ध में भी उनकी सेवा विशेष उल्लेखनीय है। अब उनमें भारतीय सेना और भारत के खिलाफ आक्रोश भड़काया जा रहा है।
19. पूर्व में लगभग 2003 में शोपियां में 22 वर्षीय नीलोफर जान और उसकी 17 वर्षीय ननद अपने सेव के बगीचे से गायब हो गयीं थी और उनके शव समीप के नाले में मिले थे।
20. स्थानीय पुलिस ने जांच में पाया कि अचानक बादल फटने और बाढ़ आने से दोनों युवतियां बहकर मारी गयीं।
21. अलगाववादियों ने कहा कि भारतीय सेना ने उनका बलात्कार कर हत्या की है।
22. उमर अब्दुल्ला ने स्थानीय पुलिस की जांच को नकारते हुए 17 अधिकारियो को सस्पेंड कर जेल भेजा और जांच के लिए न्यायिक कमेटी का गठन किया।
23. न्यायिक कमेटी ने बताया कि दोनों युवतियों के साथ बलात्कार कर हत्या की गयी।
24. सेना की ओर से दबाव बढ़ने पर सीबीआई जांच करवाई गयी, फोरेंसिक नमूने तीन भिन्न देशों में भेजे गए। किसी भी रिपोर्ट में बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई।
25. सभी 17 निलंबित अधिकारीयों को दोषमुक्त पाया गया।
26. किन्तु इस घटना से कश्मीर में व्यापक हिंसा, प्रदर्शन और असंतोष के चलते 47 दिनों तक कफ्र्य लागू रहा।
काशी से प्रारम्भ होकर कठुवा तक यही सिद्ध करने की कोशिश की गई कि इन मंदिरों के पुजारी चरित्रहीन और भ्रष्ट थे, उन्हीं तर्कों को पाकिस्तान के टीवी चैनलों पर बैठ कर भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार को हटाने के लिए सहयोग मांगने वाले नेताओं के साथ पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी की प्रोपेगैंडा शाखा (आईएसपीआर) ने दिल्ली में बैठे ऐसे राष्ट्रद्रोही पत्रकार जिन्हें विभिन्न एजेंसियों के द्वारा धन मुहैय्या कराया जाता है, के साथ मिलकर आंशिक रूप से अपने षड्यंत्रों में सफल रहे और जम्मू कश्मीर के अंदर मुसलमानों की बेटियां सुरक्षित नहीं हैं, यह बात अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कहने में सफलता पाई।’ कठुआ बालिका हत्या के विषय में फॉरेंसिक रिपोर्ट आ चुकी है, उस परिस्थिति में जिनलोगों ने हिन्दुस्तान के संस्कृति के आधार स्तंभ मंदिर, पुजारी, चरित्र, सबको दांव पर लगाकर देशद्रोह का काम किया, क्या ऐसे लोगों को कानून के घेरे में लेने का वक्त नहीं आ गया है? 
लेखक -  स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती, राष्ट्रीय महामंत्री अखिल भारतीय संत समिति
acharya_jeetendra@Yahoo.com

सोमवार, 26 दिसंबर 2016

चीन से इटली तक भारत की रेंज में, शक्तिशाली एटमी मिसाइल अग्नि 5 का कामयाब परीक्षण

Pic Courtesy : DPR 
नई दिल्ली: लंबी दूरी की सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइल अग्नि-5 का ओडिशा के अब्दुल कलाम आइलैंड में सोमवार को किए चौथे सफल परीक्षण के बाद परमाणु युक्त अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (आईसीबीएम) बनाने वाला भारत पांचवां देश बन गया है। इससे पहले रूस, अमेरिका, फ्रांस और चीन इस तरह की मिसाइल विकसित कर चुके हैं। मिसाइल की पूरी मारक क्षमता के साथ किये गये परीक्षण में सभी राडार और ट्रैकिंग सिस्टम ने मिसाइल के प्रदर्शन से जुड़े अलग-अलग मापदंडों की निगरानी की गई और पाया गया कि इसने अपने सभी लक्ष्य कामयाबी से पूरे किए हैं। इस सफल परीक्षण से देश में स्वदेशी मिसाइल निर्माण की क्षमता में इजाफा हुआ है। सेना में शामिल होने से पहले इसके और दो तीन टेस्ट किए जाएंगे फिर इसका उत्पादन होगा। खास बात ये है कि जरूरत पड़ने पर इसकी रेंज 5000 से अधिक भी बढ़ाई जा सकती है।
क्यों खास है अग्नि 5-
पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इराक, ईरान और इटली समेत करीब आधा यूरोप इसकी जद में
चीन, रूस, मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस तक निशाना लगाने की क्षमता
भारत की सबसे मारक मिसाइल का सफल परीक्षण, चीन-पाकिस्तान तक मारक क्षमता
5000 किलोमीटर से ज्यादा दूरी तक लक्ष्य भेदने में सक्षम
1000 किलो तक वारहेड ले जाने में सक्षम
85 फीसदी स्वदेशी तकनीक का इस्तेमाल
20 मिनट में लक्ष्य पर हिट कर सकती है
अग्नि सीरीज की सबसे आधुनिक मिसाइल
तीन चरणों और सतह से सतह तक मार करने में सक्षम
नेवीगेशन, गाइडेंस, वारहेड और इंजन से जुड़ी नई तकनीकें शामिल
मिसाइल को आसानी से डिटेक्ट करना मुश्किल
मिसाइल में रिंग लेजर गायरो बेस्ड इनरशियल नेविगेशन सिस्टम (RINS) और माइक्रो नेविगेशन      सिस्टम (MINS) टेक्नीक का इस्तेमाल किया गया है। इससे सटीक निशाना लगाने में माहिर।
मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल (MIRV) टेक्नीक के इस्तेमाल से एकसाथ कई टारगेट       पर वार कर सकेगी।
कई परमाणु वारहेड एक साथ छोड़े जा सकते हैं। एक बार छोड़ने के बाद रुकना नामुमकिन
17 मीटर लंबी अग्नि-5 का वजन 50 टन है। लॉन्चिंग सिस्टम में कैनस्टर टेक्नीक का इस्तेमाल किया     गया है। इसकी वजह से मिसाइल को आसानी से कहीं भी ट्रांसपोर्ट किया जा सकता है।
अग्नि में 85% स्वदेशी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है।
मिसाइल की तीन स्टेज हैं। ये सॉलिड फ्यूल से चलती है। कई न्यूक्लियर वॉरहेड एक साथ छोड़े जा सकेंगे।   एक बार छोड़ने पर इसे रोका नहीं जा सकेगा।