दस सालों तक उपराष्ट्रपति रह कर सत्ता की मलाई चाटने के बाद अपने कार्यकाल के आखिरी दिन हामिद अंसारी(पूर्व छात्र, #AMU) को एहसास हुआ कि भारत के मुसलमान डर के साये में जी रहे हैं। ये बानगी है उस ऐतिहासिक मानसिकता की जिसने भारत के टुकड़े करवाये। जब तक सत्ता में रहते हैं, ये मुल्क अपना लगता है। सत्ता खोने के डर से देश को तोड़ने की बात होने लगती है।
यह मानना कि भारत के टुकड़े करने के लिए अकेले जिन्ना जिम्म्मेवार है तो यह एक भुलावे जैसा है। इतिहास पर पर्दा डालने की कोशिश है। जिन्ना सिर्फ एक मोहरा था, असल में तो पाकिस्तान अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी #AMU की पैदाइश है। जिन्ना धर्मनिरपेक्ष था। #AMU ने जिन्ना को कट्टर साम्प्रदायिक बनाया। जिन्ना को सामने रखा और उसका इस्तेमाल कर देश को तोड़ दिया।
पाकिस्तान के जाने माने अर्थशास्री और कम समय के लिए पाकिस्तान के वित्त मंत्री भी रहे शाहिद जावेद बुर्की अपनी किताब
पाकिस्तान: फिफ्टी इयर्स ऑफ नेशनहुड में लिखते हैं कि "सर सय्यद की बनाई अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी #AMU ने न केवल पाकिस्तान आंदोलन और उसके कर्ताधर्ताओं को जन्म दिया बल्कि दुनिया के नक्शे पर एक नए मुल्क पाकिस्तान और उसके शुरुआती शासकों को भी पैदा किया। अलीगढ़ यूनिवर्सिटी #AMU ने मुसलमानों में नई राजनीतिक चेतना जगाई और भारत के मुसलमानों को 'टू नेशन्स थ्योरी' के पीछे खड़ा किया।"
पाकिस्तान का बच्चा-बच्चा स्कूल की किताबों में यही पढ़ता है लेकिन भारत में इतिहास के इन तथ्यों पर चालाकी से पर्दा डाल दिया गया है। जिहादियों को बंदूक चलाने के लिए भारत में बहुत सारे कंधे हासिल हैं। 'कवर फायर' के लिए राजनीतिक दलों, एन जी ओ, पत्रकारों, इतिहासकारों, कलाकारों की एक लंबी श्रृंखला है।
वर्तमान पाकिस्तान तो सिर्फ एक भूगोल है। पाकिस्तान का इतिहास #AMU के अंदर आज भी जिंदा है। #AMU की नींव जिस सय्यद अहमद खान ने रखी थी, उसी ने पहली बार 'टू नेशन्स थ्योरी' को दुनिया के सामने रखा। 'टू नेशन्स थ्योरी' के आधार पर ही देश के टुकड़े हुए।
सय्यद अहमद खान ने 1857 की आजादी की लड़ाई को 'हरामजदगी' कहा। मुसलमानों को आजादी की लड़ाई से अलग किया। ये हैं उसकी सोच के कुछ नमूने :
1. " हिंदुओं के साथ रहने की बजाय हम अंग्रेजों के नीचे रह लेंगे क्योंकि वो भी किताब (आसमानी) से चलने वाले हैं।"
2. " जब तक दो कौमों में से कोई एक जीत कर दूसरे को गुलाम नहीं बना लेगा तब तक अमन कायम नहीं हो सकता।"
3. " उर्दू सभ्य लोगों की भाषा है और हिंदी गँवारों की भाषा है।"
ये हैं #AMU के संस्थापक की विभाजनकारी, साम्प्रदायिक और हिंदुओं के प्रति घृणा और हिंदी भाषा से नफरत की सोच के नमूने जिसकी बुनियाद पर आगे चल कर मुस्लिम लीग बनाई गई। अंदाजा करना मुश्किल नहीं कि जब जड़ ही ऐसी थी तो फल कैसे होंगे।
आइये देखते हैं #AMU से निकलने वाले पाकिस्तान के रहनुमाओं को:-
1. लियाकत अली खान जिसने अपनी बीवी राणा के साथ 1930 के गोलमेज सम्मेलन से निराश जिन्ना को दुबारा भारत आने के लिए राजी किया ताकि मुस्लिम लीग के अधूरे काम को पूरा किया जा सके। ये पाकिस्तान का पहला प्रधानमंत्री बना।
2. फजल इलाही चौधरी पाकिस्तान का पाँचवाँ राष्ट्रपति, पाकिस्तान की नेशनल असेम्बली का स्पीकर और लियाकत अली खान की सरकार में मंत्री।
3. पाकिस्तान की हुकूमत पर कब्जा करने वाला पहला फौजी जनरल अयूब खान; पाकिस्तान का दूसरा राष्ट्रपति। जो अलीगढ़ #AMU की अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सका। कर लेता तो शायद पहला राष्ट्रपति ही बन जाता।
4. खान हबीबुल्लाह खान; कार्यवाहक राष्ट्रपति, सीनेट का पहला चेयरमैन, पश्चिमी पाकिस्तान का मुख्यमंत्री और अयूब खान की सरकार में गृहमंत्री।
5. ख्वाजा नजीमुद्दीन: पाकिस्तान मुस्लिम लीग का अध्य्क्ष, पाकिस्तान का दूसरा प्रधानमंत्री और दूसरा गवर्नर जनरल।
6. अबू बकर अहमद हलीम; (पैदाइश बिहार में), #AMU में प्रोफेसर, पाकिस्तान आंदोलन में पर्चे और साहित्य लिखने की जिम्मेदारी। सिंध यूनिवर्सिटी का पहला वाइस चांसलर और कराँची यूनिवर्सिटी का पहला वाइस चांसलर।
7. ज़ियाउद्दीन अहमद; #AMU के कुलपति, पाकिस्तान आन्दोलन में केंद्रीय नेतृत्व।
8. अब्दुर रब निश्तर; पाकिस्तानी पंजाब का पहला पाकिस्तानी गवर्नर, पाकिस्तान का संचार मंत्री।
दर्जनों ऐसे नाम हैं। साफ है कि जिन्ना के उस्ताद और गुर्गे सब #AMU की ही पैदाइश थे जिन्होंने भारत के टुकड़े कर पाकिस्तान को पैदा किया। पाकिस्तान बने इसके लिए ऑल इंडिया सुन्नी कॉन्फ्रेंस के बैनर तले बरेलवी मौलानाओं ने फतवे जारी किए। 'इस्लाम खतरे में है' यह हल्ला कर मुस्लिम लीग ने बरेलवी और सूफियों को पाकिस्तान के लिए राजी किया। मौलाना हुसैन अहमद मदनी ने जरूर पाकिस्तान के विचार का विरोध किया लेकिन कुछ ताकतवर देवबंदी मौलाना समर्थन में भी थे।
बँटवारे ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया। कालांतर में किसी देश और समाज के धार्मिक आधार पर विभाजन के लिए पाकिस्तानवाद शब्द ही प्रयोग होने लगा। नाइजीरिया और सूडान इसके उदाहरण हैं।
अलीगढ़ विश्वविद्यालय #AMU ने दुनिया को एक मुल्क ही नहीं दिया है। ओसामा बिन लादेन के भक्त और महमूद गजनवी की याद में आँसू बहाने वाले प्रतिबंधित स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया #SIMI की पैदाइश भी 1977 में #AMU से ही हुई है। जिस पर 2001 में अटल जी की सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया। लश्करे तैयबा, इंडियन मुजाहिदीन, हूजी, हरकत उल अंसार जैसे आतंकी संगठनों के साथ सिमी के रिश्ते जगजाहिर हैं लेकिन कांग्रेस ने इसी सिमी #SIMI को बचाने के लिए #भगवा_आतंकवाद का षड्यंत्र रचा। हिंदुओं और हिन्दू संगठनों को फँसाने में कांग्रेस ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। आज भी सिमी #SIMI, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के नाम से #ISIS के स्लीपर सेल के रुप में काम कर रहा है। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की गतिविधियों का अब पर्दाफाश हो रहा है और कुछ राज्यों में प्रतिबंध भी लगा है।
इस साल की शुरुआत में हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादी मन्नान बशीर वानी की खबरें और तस्वीरें वायरल हुई थी। साहब ने भी अपना शोध कार्य #AMU में ही पूरा किया था।
और कितना इतिहास वाचन किया जाए आपका? मेरा #AMU के भाइयों से इतना ही अनुरोध है कि ऐसी आजादी कहीं नहीं मिलेगी, जहाँ आप भारत तेरे टुकड़े होंगे.....इंशाअल्लाह.... इंशाअल्लाह के नारे लगा सको। पाकिस्तान में तो सिर्फ #मस्जिद_में_पाद_देने पर #तैमूर को सजा हो जाती है और भारत में #तैमूर की चिंता में मीडिया आसमान उठाये रहता है।
इसलिए भाइयों इतिहास के कलंक को मिटाने के लिए आगे आओ। शुरुआत जिन्ना की तस्वीर हटा कर की जा सकती है। जमाना बदल रहा है। उसकी आहट सुनो। गौर से देखो तुम्हारा प्यारा पाकिस्तान, तुम्हारे सपनों का पाकिस्तान 1971 के बाद फिर से बिखरने की कगार पर है।
|
लेखक - गोविंद शर्मा, हिंद-बलोच फोरम के अंतर्राष्ट्रीय संयोजक हैं |